विकास में बाधक बना महत्वपूर्ण ओहदों का एडहॉक चार्ज!
- By Sheena --
- Saturday, 25 Nov, 2023
Adhoc charge of important posts becoming a hindrance in development!
-प्रशासक के सलाहकार की पोस्ट पर अभी तक कोई नियुक्ति नहीं, अब 30 नवंबर को एसएसपी ट्रैफिक का भी होने वाला डेपुटेशन पूरा
-राइट टू सर्विस कमीशन जैसी संवैधानिक पोस्ट पर भी सात महीने तक नहीं हुई थी किसी अफसर की नियुक्ति
-पूर्व एसएसपी कुलदीप चहल के जाने के बाद एसएसपी ट्रैफिक के पास रहा यह महत्वपूर्ण चार्ज
चंडीगढ़,25 नवंबर (साजन शर्मा): चंडीगढ़ प्रशासन फिलहाल कार्यवाहक चार्जों के सहारे आगे बढ़ रहा है। कई अफसर रिटायर हो रहे हैं या दूसरी जगह ट्रांसफर हो रहे हैं तो उनकी जगह दूसरे अफसर को चार्ज देकर काम चलाया जा रहा है। महत्वपूर्ण ओहदों पर एडहॉक चार्ज शहर के विकास में बाधा बन रहा है। एसएसपी ट्रैफिक मनीषा चौधरी का जल्द ही डेपुटेशन पूरा होने जा रहा है। प्रशासन भली भांति जानता है कि कौन से अफसर जल्द रिटायर होने जा रहे हैं या उसकी वापसी हो रही है लेकिन इन अफसरों की जगह दूसरे अफसरों को मांगने में देरी की जा रही है। इससे प्रशासन के काम लटक रहे हैं। खासतौर से पॉलिसी निर्णय लेने में दिक्कतें हो रही हैं।
एसएसपी ट्रैफिक मनीषा चौधरी 30 नवंबर को डेपुटेशन पूरा होने पर हरियाणा वापिस जा रही हैं। ट्रैफिक एसएसपी का चंडीगढ़ में बहुत ही महत्वपूर्ण रोल है। ट्रैफिक विभाग का एक पूरा लाव-लश्कर एसएसपी ट्रैफिक के नेतृत्व में चंडीगढ़ में काम करता है। इनकी जगह अगर समय पर अफसर नहीं आता तो लाजिमी है कि इनका चार्ज किसी दूसरे अफसर के सुपुर्द किया जाएगा लेकिन एडहॉकिज्म पर जो नियुक्ति होती है या जिसे चार्ज मिलता है तो वह इस ड्यूटी को गंभीरता से नहीं निभाता बल्कि समय काटता है। इस वजह से व्यवस्था का संपूर्ण ढांचा अस्थाई नियुक्ति के दौरान तहस नहस हो जाता है। एसएसपी ट्रैफिक मनीषा चौधरी का कोई पहला उदाहरण नहीं है। 31 अक्टूबर को प्रशासक के सलाहकार रहे धर्मपाल की रिटायरमेंट हुई लेकिन उनके रिटायर होने से पहले कोई दूसरा अफसर तैनात नहीं किया गया।
प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित ने सलाहकार का चार्ज जरूर गृह सचिव नितिन कुमार यादव को सौंप दिया। नितिन कुमार यादव इस जिम्मेदारी को हालांकि बखूबी से निभा रहे हैं लेकिन कार्यवाहक पोस्ट का चार्ज संभाले कोई भी अफसर पालिसी निर्णय लेने से गुरेज करते हैं। आरटीआई कार्यकर्ता आरके गर्ग की दलील है कि जब प्रशासन भली भांति जानता है कि फलां अफसर रिटायर हो रहा है तो उसके लिये केंद्र से तालमेल बिठा कर पहले ही व्यवस्था क्यों नहीं की जाती। अफसर न होने की वजह से शहर में हो रहे विकास की रफ्तार पर ब्रेक लगने लगती है। इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? अफसर आते हैं जाते हैं, लेकिन शहर का भठ्ठा बिठा कर चले जाते हैं। उनके लिये तो शहर में पोस्टिंग महज नौकरी पूरी करने की प्रक्रिया है। प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित को अपने अफसरों का पूरा कोरम समय पर पूरा करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर चंडीगढ़ में उनकी नियुक्ति है। शहर इस लेटलतीफी की वजह से क्यों झेले? समय पर प्रोसेस चला कर अफसर को यहां बुलाना चाहिए।
चंडीगढ़ में बीते कुछ समय से अक्सर ऐसा हो रहा है। बीते दिनों यहां से एसएसपी कुलदीप चहल को वापिस उनके मूल कैडर पंजाब में भेजा गया था। इस दौरान भी एसएसपी की स्थाई नियुक्ति समय पर नहीं हुई। एसएसपी ट्रैफिक मनीषा चौधरी को कई दिन तक यह चार्ज देकर रखा गया। अनुशासन से काम करने वाली पुलिस फोर्स का इससे न केवल मनोबल गिरता है बल्कि उनमें सीनियर अफसर न होने से अनुशासनहीनता भी घर कर लेती है। बीते दिनों राइट टू सर्विस कमीशन जैसी संवैधानिक बॉडी की पोस्ट पर भी कई दिन तक कोई नियुक्ति नहीं हुई। नियुक्ति क्यों नहीं हुई इसके पीछे भी राजनीति हावी रही लेकिन अफसर न होने से सारे कामकाज रूक गए। चंडीगढ़ के विभाग बेलगाम हो गये। करीब सात महीने यह पोस्ट बिना अफसर के रही।
अफसरों की नियुक्ति की प्रक्रिया काफी लंबी
यूटी में अफसरों की तैनाती का प्रक्रिया काफी लंबी रहती है। केंद्र सरकार की ओर से अहम ओहदों पर नियुक्तियां होती हैं। एडवाइजर के लिये पहले केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय पैनल देखता है। इनमें से किसी नाम पर कैबिनेट कमेटी ऑफ एप्वाइंटमेंट में मोहर लगती है। अन्य अफसरों के मामले में राज्य प्रशासक के पास पैनल भेजते हैं। इस पैनल को आगे केंद्र सरकार को भेजा जाता है। केंद्र सरकार फिर कैबिनेट कमेटी ऑफ एप्वाइंटमेंट में किसी एक नाम को छांटती है। फिर राज्य के पास वह प्रशासक के पास यह नाम भेजा जाता है। राजनीतिक दखलांदाजी के चलते कई मर्तबा इनमें भी अंतिम समय में बदलाव हो जाते हैं। यानि जो अफसर की नियुक्ति की प्रक्रिया है वह काफी लंबी है, लिहाजा महीनों तक महत्वपूर्ण पोस्टों पर अफसर नहीं पहुंचता जिससे शहर में विकास रुक जाता है। खासतौर से नीतिगत निर्णय कार्यवाहक अफसर नहीं लेते क्योंकि उन्हें मालूम है कि देर सवेर उनकी जगह दूसरा अफसर आने वाला है।